विद्युत भूभौतिकी विधियाँ अधस्तल की प्रतिरोधकता वितरण को निर्धारित करने के लिए उपयोग की जाती हैं और मृदा अभिलक्षण और / या शैल प्रकार और भूवैज्ञानिक संरचना के शब्दों में व्याख्या की जा सकती है। प्रेरित ध्रुवीकरण (आईपी) एवं संमिश्र प्रतिरोधकता (सीआर) तकनीकें, सी एस एम टी विधि, थल परीक्षण रेडार (जीपीआर) तथा विद्युत प्रतिरोधकता टॉमोग्राफी (ईआरटी) जैसी नियंत्रित स्रोत विधियाँ उथली भूमि संबंधी जांच करने के लिए, 1 से 2 किमी तक की बड़ी गहराइयों पर पृष्ठीय पदार्थों का लक्षण वर्णन करने से लेकर प्रतिरोधकता वितरण की जांच करने तक अधिकतर प्रयोग में लाई जाती हैं, यद्यपि और भी बड़ी गहराइयों पर कुछ तकनीकों के साथ और कुछ परिस्थितियों में जांच संभव है। प्राकृतिक स्रोत विधियाँ प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले विद्युत विभवों का लाभ उठाती है यानी स्व विभव विधि (एसपी) निकट-सतह पदार्थों में वैद्युत-रासायनिक एवं विद्युत-गतिक क्रियाओं द्वारा उत्पन्न धीरे से बदलने वाले पृष्ठ विभव क्षेत्र की जांच करती है। इस विधि को भूतापीय एवं खनिज अन्वेषण तथा कतिपय भूजल संदूषकों को निरूपित करने के लिए सफलतापूर्वक अनुप्रयुक्त किया गया है।
1965-1966 के दौरान एनजीआरआई में स्थापित शुरुआती सुविधाओं में से प्रतिरोधकता प्रतिरूपण प्रयोगशाला एक थी, जिसके चलते नई इलैक्ट्रोड सरणियाँ और गभीरतर पिंडों की पहचान, विभेदन तथा अनुक्रिया की वृद्धि में उनकी प्रभाविकता जैसी नई तकनीक के विकास के माध्यम से महत्वपूर्ण मूलभूत योगदान संभव हो पाए हैं। इस दिशा में दो-इलैक्ट्रोड सरणी एक महत्वपूर्ण खोज थी। वर्तमान प्रतिरोधकता प्रतिरूपण सुविधाओं में स्यूडो-सेक्शन एवं इमेजिंग सहित अत्याधुनिक संकल्पनाएँ सम्मिलित हैं। विभिन्न इलैक्ट्रोड सरणियों पर आधारित प्रतिरोधकता मापों की व्याख्या सैद्धांतिक रूप से या प्रयोगशाला व्यवस्थाओं का उपयोग करते हुए तैयार किए गए प्रारूप वक्रों का प्रयोग करके की गई। एक जटिल समाकल, जिसमें बेसल-फलन शामिल हैं, का मूल्यांकन करने में आने वाली एक बड़ी सैद्धान्तिक कठिनाई का हल डिजिटल रैखिक फिल्टरण विधि का उपयोग करके बहुत ही कुशलतापूर्वक किया गया जिसे विभिन्न परतदार पृथ्वी प्रतिरूपों और इलैक्ट्रोड विन्यासों के लिए अनुप्रयुक्त किया गया। गहराई के साथ प्रतिरोधकता का असमंगी फेरबदल युक्त सिद्धान्त और प्रारूप वक्र विकसित किए गए थे, जो कि भारतीय क्षेत्र, जहां अयस्क पिंड अपक्षयित परतों से आच्छादित हैं, के लिए लागू है। विभिन्न इलैक्ट्रोड प्रणालियों से वैद्युत संलेखन सैद्धान्तिक रूप से और प्रयोगशाला मापों द्वारा भी विकसित किए गए थे। पृथ्वी का परीक्षण करने में इलैक्ट्रोडों की प्रभावशीलता को स्पष्ट करने हेतु विविध इलैक्ट्रोड विन्यासों की तुलना करने के लिए आयतन योगदान की एक नई संकल्पना शुरू की गई थी। इन अध्ययनों से संस्थान को पूरे विश्व में व्यापक मान्यता प्राप्त हुई।
इन तकनीकों का उपयोग करके भूजल अन्वेषण से संबंधित सभी कार्य किए जा रहे हैं। तेलंगाणा राज्य के रंगा रेड्डी जिले में मेड्चल एवं मुप्पिरेड्डिपल्लि में शांता बायोटेक कंपनी के दो संयंत्र स्थलों पर जल आपूर्ति मांग को पूरा करने के लिए अतिरिक्त भूजल संसाधनों को उत्पन्न करने और जल संरक्षण उपायों के लिए रणनीतियाँ तैयार करने के लिए भूजल परीक्षण किए गए थे। जलविज्ञान संबंधी मॉनीटरन, प्रतिरोधकता सर्वेक्षण, जल-भूवैज्ञानिक जांच, अनुरेखक अध्ययन जैसे परीक्षण पुनर्भरण और भूजल संभाव्यता क्षेत्रों का मूल्यांकन करने के लिए किए गए थे। ई आर टी अध्ययनों का उपयोग करके, आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के ताडिपत्रि मंडल में भूजल पूर्वेक्षण के लिए किए गए जटिल भूवैज्ञानिक भूभाग युक्त कठोर एवं मृदु शैल अधस्तल मानचित्रण से 230 मीटर तक की गहराई पर जल धारी शैलसमूहों को निरूपित किया गया है। गहरे जलभृत कठोर शैल समूहों में जलीय सहलग्नता अध्ययन एक और मुख्य क्षेत्र है, जिसका परीक्षण वर्तमान में नेरेडमेट, हैदराबाद के पास किया जा रहा है। हुसैनसागर सरोवर तली अवसादों के, तेलंगाणा के रंगा रेड्डी जिले में गाजुलरामारम के प्रस्तावित ग्रेनाइट खदान गड्ढों में निपटान से होने वाले संदूषक अभिगमन का मूल्यांकन ई आर टी तकनीक इस्तेमाल करके किया गया है, इससे प्रदूषकों के निपटान के लिए एक उपयुक्त स्थान का खाका बनाया गया है। मेसर्स श्री चैतन्या क्लोराइड्स प्राइवेट लिमिटेड, आई डी ए पाशमैलारम, पटानचेरु (मंडल), मेदक जिला, तेलंगाणा में और उसके आस-पास निस्यंद के उद्गम स्थान का आकलन करने हेतु सीएसआईआर-एनजीआरआई ने कई भू-अंतर्वेधी रेडार (जी पी आर) प्रोफाइल और कई वैद्युत प्रतिरोधकता टॉमोग्राफी (ई आर टी) सर्वेक्षण संचालित किए हैं। पीन्या औद्योगिक क्षेत्र (पी आई ए), बेंगलूर में और उसके आस-पास अधस्तल की परिस्थितियों का वैद्युत प्रतिरोधकता टॉमोग्राफी (ई आर टी) बिंबविधान प्रणाली के उपयोग के जरिए और जल नमूनों के विश्लेषण के माध्यम से मूल्यांकन किया गया था। जल गुणवत्ता विश्लेषणों के परिणामों से यह पाया गया है कि भूजल, संपूर्ण क्रोमियम और षट्संयोजी क्रोमियम और अन्य विषाक्त तत्वों से संदूषित हुआ है। प्रकाशम जिले के गिद्दलूर एवं कंबम मंडलों में 20 स्थानों पर किए गए लंबमान विद्युत गहराई मापन, शेल-फ़ाइलाइट और शेल- क्वार्ट्ज़ाइट संस्पर्श मंडल शैल समूहों में 200 मीटर की गहराई के भीतर मध्यम से उच्चतर क्षमता वाले जलभृत मंडलों को दर्शाते हैं।
इस समूह ने हाल ही में, जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन के लिए वायुवाहित, थल एवं वेधछिद्र भूभौतिकी की एकीकृत विधि का उपयोग करके हेलीवाहित जलभूभौतिकी पर मूल सक्षमता विकसित की है, जिसे भारत में मरुस्थल, मध्य गंगा मैदान (एम जी पी), जलोढक आवृत कठोर शैल, क्रिस्टलीय कठोर शैल, पूर-बेसाल्ट, तटीय भू-भाग जैसे मुख्य जलभूवैज्ञानिक विन्यासों का प्रतिनिधित्व करने वाले छह प्रायोगिक क्षेत्रों में काम में लाया गया। यह समूह वर्तमान में सूरत में स्मार्ट शहर की स्थापना के लिए वायुवाहित विद्युत-चुंबकीय (ए ई एम) सर्वेक्षण करने और इलाहाबाद में गंगा-यमुना दोआब के दोआब क्षेत्र में पुराजलमार्ग मानचित्रण में लगा हुआ है। इस समूह ने बृहत् डाटा सेट को संभालने की और उसका जल-भूभौतिकीय प्रतिरूपों में रूपान्तरण करने की क्षमता विकसित की है। इसके अलावा भूजल अभिवाहों का अनुमान, जलभृत पैरामीटर अनुमान एवं अभिलक्षणन, जैसे कि प्राकृतिक पुनर्भरण, जलीय चालकता एवं पारगम्यता, प्रदूषण अध्ययन, आर्द्रभूमि का उपयोग कर अपशिष्ट जल का प्राकृतिक उपचार विकसित किए गए। कठोर शैलों में प्राकृतिक पुनर्भरण के स्थानगत-कालगत वितरण के लिए आश्मिक दृष्टि से व्यवरुद्ध वर्षा (एल सी आर) पद्धतियाँ; जलभृत पारगम्यता का कोक्रिग किया हुआ अनुमान; भूवैद्युत पैरामीटरों से कठोर शैल जलीय चालकता अनुमान; अर्ध-शुष्क कठोर शैल इलाकों में संपोषणीय भूजल प्रबंधन के लिए परिवर्तनशील कृषि-जलवायु परिदृश्य युक्त निर्णय समर्थन उपकरण (डी एस टी) आदि। यह समूह कठोर शैल द्रवगतिकी की जटिलता को समझने के लिए भारत-फ्रांसीसी भूजल अनुसंधान केन्द्र के अन्तर्गत 1991 से महेश्वरम जलसंभर में प्रायोगिक परियोजना पर दीर्घकालिक अध्ययन करता आ रहा है और नियंत्रित और नए प्रयोगों के लिए एनजीआरआई परिसर चौटुप्पल में प्रयोगात्मक जलविज्ञान संबंधी पार्क की स्थापना की। प्रायोगिक अध्ययनों में जो विकास हुआ है, उसे और आकार बढ़ाकर समान भूवैज्ञानिक विन्यासों में बड़े प्रदेशों पर अनुप्रयुक्त किया गया। इस समूह ने राजीव गांधी पेयजल मिशन के तहत समाज के लिए योगदान दिया है। इसमें भूभौतिकीय तकनीकों का उपयोग करके बड़ी संख्या में वेधछिद्र स्थल उपलब्ध कराए गए और पीने के लिए तथा घरेलू आवश्यकताओं के लिए जल आपूर्ति करने हेतु ड्रिल किए गए।
नाम | पदनाम |
डॉ. शकील अहमद | मुख्य वैज्ञानिक |
श्री सोमवंशी वी.के. | वरि. प्रधान वैज्ञानिक |
डॉ. कुशल पाल सिंह | प्रधान वैज्ञानिक |
डॉ. सुभाष चन्द्रा | प्रधान वैज्ञानिक |
डॉ. रत्नाकर आर. धकाते | प्रधान वैज्ञानिक |
डॉ. देवाशीश कुमार | वरि. वैज्ञानिक |
डॉ. तन्वी अरोरा | वैज्ञानिक |
श्री सतीश चन्द्रपुरी | वैज्ञानिक |
डॉ. साहेबराव सोनकांबले | वैज्ञानिक |
श्री नागय्या ई | वरि. तकनीकी अधिकारी (1) |
श्री लोहित कुमार केथावथ | तकनीकी सहायक |
पृष्ठ अंतिम अपडेट : 18-10-2023